”रायगढ़ | विशेष रिपोर्टएनटीपीसी तलाईपल्ली कोल माइंस प्रोजेक्ट एक बार फिर सुर्खियों में है — इस बार वजह है ठेका व्यवस्था में बढ़ती अव्यवस्था और असमानता। परियोजना से जुड़े संविदाकर्मियों ने प्रबंधन को पत्र भेजकर गंभीर सवाल उठाए हैं कि आखिर एक ही कार्यस्थल पर तीन-तीन ठेकेदारों से मैनपावर क्यों ली जा रही है, जबकि केंद्र सरकार की “One Site – One Contract” नीति स्पष्ट रूप से पारदर्शिता और समानता की बात करती है।


संविदाकर्मियों ने आरोप लगाया है कि अलग-अलग ठेकेदारों के तहत काम करने वाले मजदूरों के वेतन और भत्तों में भारी अंतर है। किसी को HRA और कम्युनिकेशन अलाउंस मिल रहा है, तो किसी को नहीं। वहीं, “चांद कलेक्शन” में कार्यरत कर्मचारियों को यह सभी भत्ते दिए जा रहे हैं, जबकि समान कार्य करने वाले अन्य मजदूर इनसे वंचित हैं।“समान काम, असमान वेतन” का विवाद गहराया श्रमिकों का कहना है कि यह स्थिति Contract Labour (Regulation & Abolition) Act, 1970 की भावना के खिलाफ है। अधिनियम के अनुसार समान कार्य के लिए समान वेतन और सुविधाएँ अनिवार्य हैं। मजदूरों ने प्रबंधन से मांग की है कि सभी मैनपावर सप्लाई कॉन्ट्रैक्ट्स को एकीकृत कर एक ही एजेंसी को जिम्मेदारी दी जाए, ताकि भेदभाव की स्थिति समाप्त हो।साल-दर-साल नए ठेके से बढ़ी अस्थिरताएनटीपीसी में मेंटेनेंस और मैनपावर सप्लाई के लिए हर साल नया कॉन्ट्रैक्ट जारी किया जाता है।
इससे न केवल ठेकेदारों की मनमानी बढ़ती है बल्कि श्रमिकों की सामाजिक सुरक्षा भी खतरे में रहती है। श्रमिकों ने प्रस्ताव दिया है कि इन कॉन्ट्रैक्ट्स की अवधि तीन वर्ष की जाए, जिससे कार्यस्थल पर स्थायित्व और जवाबदेही दोनों सुनिश्चित हो सकें।प्रबंधन की चुप्पी बनी चर्चा का विषयश्रमिकों का कहना है कि उन्होंने 15 अक्टूबर 2025 को भी इसी संबंध में पत्र भेजा था, लेकिन सात दिन बीतने के बाद भी न तो कोई उत्तर मिला, न कोई आश्वासन।
अब दोबारा स्मरण पत्र भेजकर उन्होंने तीन दिन का अल्टीमेटम दिया है। यदि इस अवधि में निर्णय नहीं लिया गया, तो वे Factories Act, 1948 की धारा 111-A के तहत प्रतिनिधित्व और आंदोलन का रास्ता अपनाएँगे।मजदूर संगठनों में बढ़ी हलचलइस मुद्दे को लेकर क्षेत्र के श्रमिक संगठनों में भी हलचल तेज हो गई है।
मजदूर संघों का कहना है कि ठेका व्यवस्था की यह विसंगति केवल तलाईपल्ली ही नहीं, बल्कि कई राष्ट्रीय परियोजनाओं में देखी जा रही है। एनटीपीसी जैसी सार्वजनिक इकाई से अपेक्षा है कि वह “लेबर इक्विटी” यानी मजदूर समानता का आदर्श प्रस्तुत करे।विशेषज्ञों की रायश्रम कानून विशेषज्ञों का कहना है कि यदि संविदाकर्मियों की मांगों पर समय रहते ध्यान नहीं दिया गया, तो यह मामला औद्योगिक विवाद की श्रेणी में आ सकता है। इससे न केवल उत्पादन प्रभावित होगा, बल्कि एनटीपीसी जैसी राष्ट्रीय परियोजना की साख पर भी असर पड़ेगा।
एनटीपीसी तलाईपल्ली में ठेका व्यवस्था की यह असमानता अब प्रशासनिक ढांचे के लिए चुनौती बनती जा रही है। संविदाकर्मी अब केवल वेतन नहीं, बल्कि न्यायपूर्ण श्रम नीति की मांग कर रहे हैं। सवाल यह है कि क्या एनटीपीसी प्रबंधन मजदूरों की इस चेतावनी को गंभीरता से लेगा, या फिर आने वाले दिनों में तलाईपल्ली की खदानों से कोयले की जगह विरोध के स्वर गूंजेंगे।
