लैलूंगा, रायगढ़ – उम्र चाहे कितनी भी हो, आत्मनिर्भरता और संघर्ष की मिसाल बन सकती है। कुछ ऐसा ही उदाहरण हैं लैलूंगा क्षेत्र के खार जतरा की 90 वर्षीय सावित्री राठिया, जो आज भी अपने जीवन की जरूरतों को पूरा करने के लिए सरई पत्तों से बनी “सरई धूप” बेचने का कार्य कर रही हैं।
जीवन की सांझ बेला में जहां अधिकतर लोग आराम चाहते हैं, वहीं सावित्री बाई आज भी जंगलों से सरई पत्ते बटोरकर पारंपरिक धूप बनाती हैं और गांव-गांव जाकर बेचती हैं। इस कार्य से उन्हें बहुत अधिक आमदनी नहीं होती, लेकिन दो वक्त की रोटी का इंतज़ाम हो जाता है।
सावित्री बाई बताती हैं कि “सरकार की पेंशन योजना या अन्य किसी प्रकार की सरकारी सहायता उन्हें अभी तक नियमित रूप से नहीं मिल पाई है।” इसके बावजूद वह किसी के सामने हाथ नहीं फैलातीं और अपने श्रम पर विश्वास रखती हैं।
उनकी कहानी न सिर्फ शासन-प्रशासन को बुजुर्गों की ज़मीनी हकीकत का आइना दिखाती है, बल्कि समाज के लिए यह संदेश भी देती है कि स्वाभिमान और परिश्रम की कोई उम्र नहीं होती।
नोट: सावित्री बाई जैसी बुजुर्ग महिलाओं के लिए स्थानीय प्रशासन और सामाजिक संस्थाओं को आगे आकर मदद और सहयोग के प्रयास करने चाहिए ताकि उन्हें उनके जीवन के इस पड़ाव पर थोड़ा सुकून मिल सके।
रिपोर्ट – bhokochand.com