
दुनियाँ के मुक्ति के खातिर, कतरा कतरा खून बहाया।

क्रूस काठ पे प्राण देकर, दुनियाँ को मसीहा बचाया।
कितना कठिन था वो पल, जब सैतानों ने खूब सताया।
हाथ पैरों में कीलें ठोके, और कांटों का मुकुट पहनाया।
उन पर कोड़े तक बरसाये, जिसने प्रेम का पाठ पढ़ाया।
पापियों के उद्धार खातिर, खुद को येशु बलिदान चढाया।
जुल्म करने वालों को भी , प्रेम करना येशु ने सिखाया।
स्वयं प्राणों की आहुति देकर, कब्र में मसीहा समाया।
“कवि जयलाल कलेत”
