
मै हर पल आराम से,
रहता हूँ कोसों दूर।
मेहनत ही करम मेरा,
मुझे कहते हैं लोग मजदूर।

परिवार की जिम्मेदारी हैं,
मैं रहता हूँ मजबूर।
ले दे कर कटता है दिन,
मुझे कहते है लोग मजदूर।
बच्चों की परवरिश खातिर,
घर से रहता हूँ दूर।
गजब है मेरी परेशानी,
मुझे कहते हैं लोग मजदूर।
चार पैसों के खातिर हरदम,
रहता हूँ हर सुख चैन से दूर,
किश्मत में आराम नहीं,
मुझे कहते हैं लोग मजदूर।
मुझे हरता है हरदम,
काम काज का ही सुरूर।
ख्वाहिश होती हैं मेरी सरेआम चूर,
मुझे कहते हैं लोग मजदूर।
मुझे किसी भी बात की ,
नहीं रहती है गुरूर।
मेरे किश्मत में लिखा है जी हुज़ूर,
मुझे कहते हैं लोग मजदूर।
“जयलाल कलेत”
